पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव (West Bengal Assembly Elections) प्रचार के दौरान टीएमसी सुप्रीमो और राज्य की सीएम ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) मंचों से चंडी पाठ कर रही हैं और मंदिर-मंदिर घूम कर पूजा-पाठ कर रही हैं, जबकि साल 2019 के चुनाव में वह पूरी तरह से अल्पसंख्यकों के वोटों को लुभाने में जुटी थीं? दूसरी ओर, बीजेपी भी क्यों ‘जय श्री राम’ का लगातार उद्घोष कर ममता बनर्जी को बार-बार चिढ़ा रही है? सामान्य ज्ञान से ही ममता बनर्जी के मंदिरों के प्रति उपजा नया प्रेम और बीजेपी के हिंदू राष्ट्रवाद को समझना मुश्किल नहीं है. दोनों की निगाहें हिंदू वोटों पर हैं और दोनों ही हिंदू वोट पाने के लिए लालायित हैं, लेकिन यह बड़ा प्रश्न है कि वे कितने लालायित हैं? बंगाल का ताज हासिल करने के लिए हिंदू वोट कितने प्रभावी है?
इसका जवाब साल 2019 के संसदीय चुनाव के आंकड़ों में छिपा है, जब बीजेपी ने बंगाल में 18 सीटों पर जीत हासिल की थी. उस चुनाव के आंकड़े यह साफ संकेत दे रहे हैं कि प्रतिद्वंद्विता करने वाली दोनों ही पार्टियां आज ऐसा क्यों कर रही हैं ? यह सर्वविदित है कि पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोट महत्वपूर्ण हैं, लेकिन चुनावी शोर में राज्य की आबादी के 71% हिंदुओं की आवाज दब गई है, हालांकि राज्य में 294 सीटों वाले विधानसभभा में 145 सीटें हैं, जहां 80% मतदाता हिंदू हैं. यानी ये सीटें सरकार बनाने के लिए जरूरी सीटों में से मात्र तीन कम हैं.
2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी इन सीटों पर आगे थी
साल 2019 के लोकसभा चुनाव के मतदान पैटर्न के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इन 145 सीटों में से 92 पर बढ़त हासिल की थी, जबकि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) 53 में आगे थी. राज्य में 55% हिंदू वोटों के ध्रवीकरण होने पर बीजेपी 121 विधानसभा क्षेत्रों (164 में टीएमसी) को बढ़त मिल सकती है और अगर यह अब हिंदू ध्रुवीकरण को और हवा दी जाती है, तो वोट शेयर में और भी उछाल आ सकता है.
उस चुनाव में यह प्रदर्शन पूरे राज्य में नहीं था. बांग्लादेश से सटे सीमावर्ती जिलों मालदा (79%), उत्तर दिनाजपुर (76), दार्जिलिंग (69%), कूचबिहार (65%), दक्षिण दिनाजपुर और नादिया (दोनों 63%) में बीजेपी को हिंदुओं के सबसे अधिक वोट मिले.
कोलकाता के दक्षिणी जिले (46%), पूर्वी मेदिनीपुर (48%), हावड़ा और दक्षिण 24 परगना (दोनों 51%), पश्चिम मेदिनीपुर और मुर्शिदाबाद (दोनों 50%) में बीजेपी को कम वोट शेयर हासिल हुए. बीजेपी गैर-सीमावर्ती क्षेत्रों में वोट शेयर बढ़ाने का खेल खेल रही है, ताकि उसका समग्र हिंदू वोट शेयर 60% से आगे निकल जाए. अगर ऐसा होता है, तो 2 मई को स्थिति पूरी तरह से बदल सकती है.
इसके अतिरिक्त, राज्य में 23% अनुसूचित जातियों की आबादी है. इनमें से हिंदू – राजबंशी, मतुआ और बाउरी का बीजेपी की ओर झुकाव साफ है. चाय बागान श्रमिकों और जंगलमहल ( पश्चिम मेदिनीपुर, झाड़ग्राम, बांकुड़ा और पुरुलिया जिलों में राज्य के पश्चिमी भाग में वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों) ने भी बीजेपी को अधिक वोट दिए, उसी तरह से उत्तर में पहाड़ी क्षेत्रों में गोरखाओं और दक्षिण बंगाल में कुछ जिलों में मतुआ ने भी बीजेपी को समर्थन किया था. बीजेपी की रणनीति राजबंशी वोट, नामशूद्र (जिनका मतुआ एक हिस्सा है) और चाय बागानों के श्रमिकों में अपनी स्थिति मजबूत करनी है, ताकि 2019 के चुनाव में अपने कुल हिंदू वोट शेयर को 55% से आगे ले जा सके.
साल 2019 में वे जिले जहां हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण 60% से अधिक है.
टीएमसी 145 सीटों में से 25-35 सीटें जीत सकती है. बीजेपी 110-120 सीटें जीत सकती है. कांग्रेस-लेफ्ट-आईएसएफ 0-3 सीटें जीत सकते हैं.
यह इन विधानसभा क्षेत्रों के लिए कितना महत्वपूर्ण है. इस संदर्भ में, दोनों पार्टियों द्वारा किया गया चुनाव प्रचार स्पष्ट हो जाता है. भारत में 2014 के चुनाव से पहले सभी गैर-बीजेपी दलों द्वारा मुस्लिम वोटों को मजबूत करने की कोशिश की जाती थी.
नरेंद्र मोदी ने 2014 में बताया कि देश में चुनाव बिना तुष्टीकरण के भी जीते जा सकते हैं
नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय परिदृश्य अभ्युदय ने इसे पूरी तरह से बदल दिया है. साल 2014 में उन्होंने पहली बार यह दिखाया कि भारत में चुनाव बिना अल्पसंख्यक वोट के भी जीते जा सकते हैं. साल 2017 में उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारी जीत हासिल की. यह 2019 के चुनाव का सबसे बड़ा पहलू था कि भारत के सबसे बड़े राज्य ने एक भी मुस्लिम सांसद को संसद में नहीं भेजा था और ममता बनर्जी को बंगाल से 18 सीटों को झटका लगा था.
अब यह साफ है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कुछ दिन पहले यह घोषणा क्यों की थी कि अर्धसैनिक बलों में एक नारायणी सेना बटालियन का गठन किया जाएगा, जो राजबंशी युवाओं के लिए रोजगार के अवसर प्रदान करेगी. अमित शाह ने असम में अनंत महाराज से भी मुलाकात की थी, जो राजबंशियों के धार्मिक नेता हैं.
राजबंशियों को लुभाने में जुटी बीजेपी
राजबंशियों को लुभाने और उनका विश्वास अर्जित करने के लिए बीजेपी कितनी गंभीर है, इसका अंदाज इससे ही लग सकता है कि बीजेपी ने अपने सांसद निशिथ प्रमाणिक को दिनहाटा विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार के रूप में उतारा है. पार्टी के नेता इस तथ्य पर भी बल दे रहे हैं कि चाय बागान के श्रमिकों के महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए केंद्रीय बजट में 1,000 करोड़ रुपये फंड आवंटित किया गया है, ताकि इन कल्याणकारी योजनाओं से उन्हें लाभ मिल सके. इस समुदाय के लोगों को संदेश देने के लिए अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा जैसे वरिष्ठ नेता विभिन्न जिलों में अपने बंगाल दौरे के दौरान इन समुदाय के गरीब लोगों के घर में लंच डिप्लोमेसी कर रहे हैं और उनका व्यापक मीडिया कवरेज भी हो रहा है.

बांग्लादेश के दौरे से मतुआ समुदाय को साधने की कोशिश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश की स्वतंत्रता की 50 वीं वर्षगांठ समारोह में भाग लेने के लिए 26-27 मार्च बांग्लादेश जा रहे हैं. ऐसा माना जा रहा है कि बांग्लादेश के दौरे के दौरान वह बांग्लादेश में ओराकांडी जा सकते हैं. यहां मतुआ समुदाय का मंदिर है, जिसे यह समुदाय बहुत ही सम्मान और आदर करता है और पूज्यनीय मानता है. बीजेपी मूलतः मतुआ (नमोशुद्र (अनुसूचित जाति), जो शरणार्थी के रूप में बांग्लादेश से भारत आया है और इस इलाके में बहुतायत की संख्या में बस गया है, पर विशेष रूप से फोकस कर रही है. इसी समुदाय को लुभाने के लिए बीजेपी ने संसद में भारतीय नागरिकता संशोधन कानून में संशोधन किया है.
बीजेपी के हिंदुत्व ने राजनीतिक पार्टियों की रणनीति बदल दी
ममता बनर्जी का राज्य की मुस्लिम वोटों विशेष प्रभाव है. अल्पसंख्यकों 27 वोट उनके खाते में जाने की उम्मीद है, लेकिन लेकिन साल 2019 में उनके गढ़ में बीजेपी की घुसपैठ और हिंदूवादी एजेंडे ने उन्हें हिंदू वोट के लिए रणनीति बदलने के लिए मजबूर कर दिया है. जैसा उन्होंने पहले कभी नहीं किया था. बीजेपी के पक्ष में 60% या अधिक हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने के लिए ममता बनर्जी अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों पर भी ध्यान केंद्रित कर रही हैं.
ममता बनर्जी भी इन समुदायों को साधने की कोशिश कर रही हैं
ममता बनर्जी भी बीजेपी की चुनौती को समझते हुए उनकी पार्टी भी अनुसूचित जाति और जनजातियों पर फोकस कर रही है. 17 मार्च को ममता बनर्जी द्वारा जारी चुनावी घोषणा पत्र में अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं के लिए मासिक 1000 रुपए भत्ता देने की घोषणा की गई है. यह राशि सामान्य जाति के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की महिलाओं को भी दी जाएगी. इसके साथ ही उन्होंने महतो जाति को अनुसूजित जाति में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को पत्र भी लिखा है. टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने यह भी घोषणा की है कि महतो, गोरखाओं और जंगलमहल के युवाओं को रोजगार के अवसर देने के लिए बंगाल पुलिस में नारायणी बटालियन, गोरखा बटालियन और जंगलमहल की स्थापना की जाएगी.
मतुआ को लुभाने के लिए लगभग 25,000 मतुआ को भूमि अधिकार दिए गए हैं. टीएमसी नेताओं ने कहा कि समुदाय के अन्य 1.25 लाख लोगों को भूमि का अधिकार दिया जाएगा. ममता सरकार ने मतुआ विकास बोर्ड का गठन किया है और उसे 10 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. इसी तरह का बोर्ड 5 करोड़ रुपये की राशि के साथ नमोशूद्र के लिए भी बनाई गई है.
गोरखा वोटों को लुभाने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी ने दार्जिलिंग के पर्वतीय इलाके के लोकप्रिय नेता बिमल गुरुंग को अपने पक्ष में करने में सफल रही है. राज्य की कुल 68 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए संरक्षित हैं. ममता बनर्जी ने इस समुदाय के 79 लोगों को उम्मीदवार बनाया है. 27 मार्च और 29 मार्च के बीच चाहे जो घटे, लेकिन यह साफ है कि इन 145 सीटों पर बंगाल युद्ध की जीत का राज छिपा हुआ है.